मित्रों वह इन्सान नहीं जो स्वार्थ में लालच कर जाये।
बेंचकर अपना ईमान जीते जी ही मर जाये ॥
मरना एकदिन सबको है,पर जीते जी ही क्या मरना।
स्वार्थ हेतु ईमान बेंचकर,भौतिक जीवन क्या करना॥
जिएँ एकदिन लेकिन ऐसे कि सौ वर्ष ही जी जाएँ।
पीना पड़े यदि राष्ट्र हेतु तो विष को भी हम पी जाएँ॥
सर्वोपरि राष्ट्र है अपना हम सबका हो नारा॥
विश्वगुरू फिर बनेंगे हम हो सङ्कल्प हमारा॥
॥जय माँ भारती॥
आपका अपना-जसविन्दर शुक्ल 'पेण्डु'
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